भारत का खोज (अथवा भारत की खोज) एक जटिल ऐतिहासिक प्रक्रिया है जो मुख्यतः भारत के इतिहास, संस्कृति, भूगोल और व्यापारिक संभावनाओं से संबंधित है। भारत की खोज का तात्पर्य केवल इसकी भौगोलिक स्थिति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस व्यापक संदर्भ को भी समाहित करता है जिसमें विदेशी यात्रियों, व्यापारियों और शासकों ने भारत के प्रति अपनी रुचि दिखाई।
प्रारंभिक समय:
भारत का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और विदेशी यात्रियों के विवरणों में मिलता है। आर्य, द्रविड़ और अन्य प्राचीन सभ्यताएँ भारत में फली-फूलीं। सिंधु घाटी सभ्यता (2600-1900 ईसा पूर्व) ने दुनिया के सबसे प्राचीन और उन्नत सभ्यताओं में से एक का निर्माण किया। इसके बाद वैदिक सभ्यता और मौर्य तथा गुप्त साम्राज्यों ने भारत को सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से समृद्ध बनाया।
विदेशी यात्रियों की भूमिका:
भारत की खोज के लिए विदेशी यात्रियों का योगदान महत्वपूर्ण है। 5वीं शताब्दी में चीनी यात्री फाहियान और बाद में ह्वेनसांग ने भारत का दौरा किया और यहाँ की समृद्धि, धर्म और संस्कृति का वर्णन किया। 13वीं शताब्दी में इतालवी यात्री मार्को पोलो ने भारत को 'सोने की चिड़िया' कहा।
व्यापारिक मार्ग और भारत की खोज:
प्राचीन काल से ही भारत अपने मसालों, कपास, रेशम और कीमती पत्थरों के लिए प्रसिद्ध था। यही कारण था कि पश्चिमी देशों के व्यापारी भारत तक पहुंचने के लिए समुद्री मार्गों की तलाश कर रहे थे। 1498 में, पुर्तगाली नाविक वास्को दा गामा ने यूरोप से भारत तक का समुद्री मार्ग खोज निकाला। वह अफ्रीका के दक्षिणी सिरे 'केप ऑफ गुड होप' से होकर भारत के कालीकट (वर्तमान कोझिकोड) पहुँचा। यह घटना भारत के व्यापारिक महत्व और उपनिवेशवाद के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ थी।
उपनिवेशवाद और भारत की खोज:
पुर्तगालियों के बाद, डच, फ्रेंच और अंग्रेजों ने भी भारत में व्यापार और शासन की महत्वाकांक्षा के साथ कदम रखा। 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई, जिसने व्यापार के नाम पर भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। 1857 के विद्रोह के बाद भारत सीधे ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया।


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