चिपको आंदोलन भारत के इतिहास में पर्यावरण संरक्षण के सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक है। यह 1970 के दशक में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) के गढ़वाल क्षेत्र में शुरू हुआ। इस आंदोलन ने न केवल पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाई बल्कि स्थानीय समुदायों की भूमिका को भी उजागर किया।
पृष्ठभूमि:
चिपको आंदोलन की शुरुआत का मुख्य कारण उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में वनों की अंधाधुंध कटाई थी। जंगल स्थानीय ग्रामीणों के लिए जीवनरेखा थे, क्योंकि वे ईंधन, चारा, लकड़ी, और खेती के लिए जल संरक्षण प्रदान करते थे। वनों की कटाई से पर्यावरण असंतुलन बढ़ा, जिससे भूस्खलन, बाढ़, और सूखे जैसी समस्याएं पैदा हुईं।
1970 के दशक में, सरकारी नीतियों के तहत बाहरी ठेकेदारों को लकड़ी काटने के लिए ठेके दिए जा रहे थे। इन ठेकों से स्थानीय लोगों की आजीविका और पर्यावरण को गंभीर खतरा हुआ।
आंदोलन की शुरुआत:
चिपको आंदोलन की शुरुआत 1973 में चमोली जिले के मंडल गांव में हुई। एक स्थानीय कंपनी को वन विभाग ने पेड़ों की कटाई का ठेका दिया। जब कंपनी के मजदूर पेड़ों को काटने पहुंचे, तो गांव की महिलाओं ने उन्हें रोकने के लिए पेड़ों से चिपकना शुरू कर दिया। इस रणनीति को "चिपको" (हिंदी में 'चिपकना') नाम दिया गया।
नेतृत्व और भागीदारी:
चिपको आंदोलन के पीछे मुख्य प्रेरणा महिला शक्ति थी। इस आंदोलन का नेतृत्व गौरा देवी, चंडी प्रसाद भट्ट, और सुंदरलाल बहुगुणा जैसे पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने किया।
गौरा देवी: मंडल गांव की महिलाओं का नेतृत्व करते हुए, उन्होंने पेड़ों को बचाने के लिए आंदोलन को संगठित किया।
सुंदरलाल बहुगुणा: उन्होंने आंदोलन को एक व्यापक मंच दिया और हिमालयी पर्यावरण के महत्व को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया।
आंदोलन का विस्तार:
चिपको आंदोलन केवल मंडल गांव तक सीमित नहीं रहा। यह जल्द ही अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया। इस आंदोलन ने वनों के महत्व को समझाते हुए "जल, जंगल, जमीन" के संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया।
आंदोलन के प्रभाव:
वन कटाई पर प्रतिबंध: 1980 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमालयी क्षेत्रों में वनों की कटाई पर 15 साल का प्रतिबंध लगा दिया।
स्थानीय सहभागिता: इस आंदोलन ने ग्रामीण समुदायों, विशेषकर महिलाओं, को पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।
वैश्विक जागरूकता: चिपको आंदोलन ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक उदाहरण स्थापित किया और वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित किया।
निष्कर्ष:
चिपको आंदोलन एक सशक्त उदाहरण है कि कैसे आम लोग, विशेषकर महिलाएं, पर्यावरण की रक्षा के लिए एकजुट हो सकते हैं। यह आंदोलन न केवल वनों को बचाने की कहानी है, बल्कि यह स्थानीय समुदायों के अधिकारों और उनके संसाधनों के संरक्षण की भी कहानी है। चिपको आंदोलन ने पर्यावरण और समाज के बीच संतुलन बनाए रखने के महत्व को उजागर किया और आज भी इसे पर्यावरणीय आंदोलनों का प्रतीक माना जाता है।


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